बचपन और बड़ेपन के कभी के मेल के बोल हैं, सहारे के, सुरक्षा के- “उँगली पकड़ो!” बचपन और बड़ेपन के ही कभी के खेल हैं, द्वंद्व मिटाने के, मन बहलाने के- “उँगली चुनो!” वे…
“वर्जनाओं के संसार में स्वीकृति की अनामिका : वह उँगली, जो सबको नहीं चुनती “
David Warren
Depending conveying direction has led immediate. Law gate her well bed life feet seen rent. On ...
“देह की चुनरी और मन के बँधेज को रूह के रंगरेज़ की तलाश”
जाने किसकी पंक्ति है- फ़ीकी चुनरी देह की, फ़ीका मन बंधेज. जिसने रंगा रूह को, वो सच्चा “रंगरेज़.” पंक्ति होली के परिप्रेक्ष्य में थी, पर बात दूर की कह जाती…
“पलाश : किंशुक के, फूल, टेसू के रंग व ढाक के पात वाला पेड़”
होली जब आती है, रंगों की बात छेड़ती है, तब टेसू के फूलों के रंग की बात छिड़ ही जाती है। होली जितनी रंग की है, उतनी ही आग की होलिका दहन के…
“रंग, तुम मेरे हाथों में कैसे आये, अंतस् में कैसे समाये!”
रंग तुम मेरे हाथों में कैसे आये! जाने किस मूल से, हरिद्रा बन कर, जाने किस फूल से, किंशुक बन कर, जाने किस पराग से, केसर बन कर, जाने किस कुसुमनाल से, हरसिंगार बन…
“गोलगप्पा : अनेक नाम पानीपूरी के, अज्ञात इतिहास गुपचुप का”
व्यंजनों में कुछ व्यंजन अपने अनूठेपन से चकित करते हैं। वैसे ही कुछ अद्भुत संरचना वाले व्यंजनों में गोलगप्पा है। देखने में छोटी, गोल, फूली, कुरकुरी रचना, मसालेदार उबले आलू व खट्टे-मीठे पानी…
“पात्रत्वाद् भोजनमाप्नोति”
भोजन की अपनी पात्रता है, पकाने से परोसने व फिर खाने तक. पात्र तरह-तरह के हैं- पत्थर और मिट्टी के, लकड़ी और पत्तों के, धातु और पोलीमर (प्लास्टिक के विविध रूप) के, शीशे और चीनी…
“अन्नं ब्रह्मेति : अन्नमय कोश बनी देह का विस्तृत संसार”
अन्न भोजन है, भोजन जीवन है, यह सार्वभौम सत्य है. परंतु आध्यात्मिकता के प्राचीनतम चरम उपदेशकों में परिगणित उपनिषद ग्रंथों से एक तैत्तिरीयोपनिषद् की उक्ति है- “अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्।” अर्थ है- अन्न ब्रह्म है, क्योंकि…
“रंग : जो स्त्रीलिंग न हुए”
प्रकृति ने बहुविध रंग दिए हैं। संस्कृति ने उसे बहुगुणित करना सीखा. संस्कृति ने जिससे सीखा, वह संभवतः स्त्री होगी. स्त्री ने जहाँ से सीखा होगा, संभवतः फूल होंगे या फिर फूल बनना…
“शहादत”
आज महान क्रांतिकारियों की शहादत का दिवस है. शहादत किसी का कमतर नहीं, न राजगुरु का, न सुखदेव का, परंतु भगत सिंह की अंतर्निहित दार्शनिकता के आगे मैं सदा नतमस्तक…
Louise Fielding
Sincerity collected happiness do is contented. Sigh ever way now many. Alteration you any nor u...