“वर्जनाओं के संसार में स्वीकृति की अनामिका : वह उँगली, जो सबको नहीं चुनती “

बचपन और बड़ेपन के कभी के मेल के बोल हैं, सहारे के, सुरक्षा के- “उँगली पकड़ो!” बचपन और बड़ेपन के ही कभी के खेल हैं, द्वंद्व मिटाने के, मन बहलाने के- “उँगली चुनो!” वे…

“रंग, तुम मेरे हाथों में कैसे आये, अंतस् में कैसे समाये!”

रंग तुम मेरे हाथों में कैसे आये! जाने किस मूल से, हरिद्रा बन कर, जाने किस फूल से, किंशुक बन कर, जाने किस पराग से, केसर बन कर, जाने किस कुसुमनाल से, हरसिंगार बन…

“पात्रत्वाद् भोजनमाप्नोति”

भोजन की अपनी पात्रता है, पकाने से परोसने व फिर खाने तक.  पात्र तरह-तरह के हैं- पत्थर और मिट्टी के, लकड़ी और पत्तों के, धातु और पोलीमर (प्लास्टिक के विविध रूप) के, शीशे और चीनी…

“अन्नं ब्रह्मेति : अन्नमय कोश बनी देह का विस्तृत संसार”

अन्न भोजन है, भोजन जीवन है, यह सार्वभौम सत्य है. परंतु आध्यात्मिकता के प्राचीनतम चरम उपदेशकों में परिगणित उपनिषद ग्रंथों से एक तैत्तिरीयोपनिषद् की उक्ति है- “अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्‌।” अर्थ है- अन्न ब्रह्म है, क्योंकि…

“शहादत”

आज महान क्रांतिकारियों की शहादत का दिवस है. शहादत किसी का कमतर नहीं, न राजगुरु का, न सुखदेव का,  परंतु भगत सिंह की अंतर्निहित दार्शनिकता के आगे मैं सदा नतमस्तक…

  • Louise Fielding

    Sincerity collected happiness do is contented. Sigh ever way now many. Alteration you any nor u...