“देह की चुनरी और मन के बँधेज को रूह के रंगरेज़ की तलाश”

जाने किसकी पंक्ति है- फ़ीकी चुनरी देह की, फ़ीका मन बंधेज. जिसने रंगा रूह को, वो सच्चा “रंगरेज़.” पंक्ति होली के परिप्रेक्ष्य में थी, पर बात दूर की कह जाती…