“देह की चुनरी और मन के बँधेज को रूह के रंगरेज़ की तलाश”

जाने किसकी पंक्ति है- फ़ीकी चुनरी देह की, फ़ीका मन बंधेज. जिसने रंगा रूह को, वो सच्चा “रंगरेज़.” पंक्ति होली के परिप्रेक्ष्य में थी, पर बात दूर की कह जाती…

“गोलगप्पा : अनेक नाम पानीपूरी के, अज्ञात इतिहास गुपचुप का”

व्यंजनों में कुछ व्यंजन अपने अनूठेपन से चकित करते हैं। वैसे ही कुछ अद्भुत संरचना वाले व्यंजनों में गोलगप्पा है। देखने में छोटी, गोल, फूली, कुरकुरी रचना, मसालेदार उबले आलू व खट्टे-मीठे पानी…